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''बारिश''

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                                                                                                                                                                                                                                       ज़िन्दगी में कुछ लोग बेमौसम की बारिश की तरह आते हैं। उनसे बचने और मिलने की हमने कोई तैयारी नहीं की होती है। लाख बचना चाहे तो भी हम उनसे मिल ही जाते है। तुम भी मेरी ज़िंदगी में वहीँ बिन मौसम की बारिश बनकर आएं। मैं बिल्कुल तैयार नहीं थी। सच कहूं तो बचकर निकलने की भी लाख कोशिश की लेकिन हमको तो मिलना ही था। मैं खुशनसीब हूँ , तुम्हारे आने से मेरे जीवन में कोई तबाही नहीं आयी बल्कि अंकुरित हुए प्रेम के नए बीज। बारिश हमेशा देखने में अच्छी लगती थी। हमेशा भीगने से डर लगता था। तुमने सिखाया कि इतना बचकर चलना भी ठीक नहीं हैं। जब में देख रही थी खिड़की से भीगी सड़कों को तुमने आवाज दी, आओं संग भीगते है प्यार की बारिश में। अब मैं ना तो भीगने से डरती हूँ और ना ही प्यार से।